हिले लागल मन
पिपर के पत्ता लेखा
हरदम हिले लागल मन
जहिया से देखली
तोहरा हेरा गेली हम
सोंच सोंच के हार
गेली अब न याद हम करम
मुदा करु कि तोहरे
याद के आसपास रहे लगली हरदम
भुल गेली बरहमबाबा न
याद रहलन गोसांइ
धरती या असमान मे
देखै छि खाली तोहर परछाइ
हे दइव हे
भगमान बुझे न सकली भेल छि हम शिला
काहे बनैला आदमी आ
काहे रचैला प्यार के लिला
विश्वराज अधिकारी
गोरखापत्र "नया नेपाल" बज्जिका पृष्ठमा २०७० फागुन १० गते शनिवार प्रकाशित
गोरखापत्र "नया नेपाल" बज्जिका पृष्ठमा २०७० फागुन १० गते शनिवार प्रकाशित
No comments:
Post a Comment